72 Part
50 times read
0 Liked
कुछ इशारे थे जिन्हें दुनिया समझ बैठे थे हम / फ़िराक़ गोरखपुरी कुछ इशारे थे जिन्हें दुनिया समझ बैठे थे हम उस निगाह-ए-आशना को क्या समझ बैठे थे हम रफ़्ता रफ़्ता ...